याद हैं मुझे वो गुज़रा ज़माना
पिछले कुछ दिनों में,
रोज़ तुझे ज़रा ज़रा सा भुलाया है,
ज़रा ज़रा सी तुझ से नफरत की है
तुझे हर कदम पे इलज़ाम देने को
कुछ न कुछ वजह ढूंढ ली है
जानते हैं की ये नफरत, ये इलज़ाम सब झूठ ही है, मगर
वो झूठ जिस से कुछ भला हो, वो कहाँ बुरा है
यही सोच के खुद को तसल्ली दी है |
नजाने कैसी अजब सी शान्ति है, इस झूठे खेल में
मज़े में हो न हो, ज़िन्दगी मगर अब आसान हो चली है |
किसी को पीछे छोड़ना, कहीं से आगे बढ़ना, शायद अब आसान हो चला है....
रोज़ तेरी ज़रा ज़रा सी बात याद किया करते थे,
और मुस्कुरा देते थे,
और मुस्कुरा देते थे,
ज़रा ज़रा संभल संभल के मोहब्बत की थी,
तेरी हर भूल को सही साबित करने को
कोई वजह ढूंढ लिया करते थे..
झूठ खुद से जाने कितनी बार कहा था, मगर..
जिस झूठ से कुछ भला हो वो कहाँ बुरा है,
यही सोच के खुद को समझाया करते थे |
कुछ जोश था, कुछ तड़प, कुछ बेचैनी थी उन मासूम पलों में
मज़े में थी, मगर फिर भी, ज़िन्दगी मुश्किल हो चली थी
पिछले कुछ दिनों में,
रोज़ तुझे ज़रा ज़रा सा भुलाया है,
ज़रा ज़रा सी तुझ से नफरत की है
तुझे हर कदम पे इलज़ाम देने को
कुछ न कुछ वजह ढूंढ ली है
जानते हैं की ये नफरत, ये इलज़ाम सब झूठ ही है, मगर
वो झूठ जिस से कुछ भला हो, वो कहाँ बुरा है
यही सोच के खुद को तसल्ली दी है |
नजाने कैसी अजब सी शान्ति है, इस झूठे खेल में
मज़े में हो न हो, ज़िन्दगी मगर अब आसान हो चली है |
किसी को पीछे छोड़ना, कहीं से आगे बढ़ना, शायद अब आसान हो चला है....
Profound! ..and palpable, every line of what you have written.
ReplyDelete"नजाने कैसी अजब सी शान्ति है," waah!!
and the last line ..bahut Khoob!
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ReplyDeleteHave been observing a maturity and insightfulness in your writings (poetry). Excellent Divesh :)
ReplyDeleteWow... one of your best poems...
ReplyDeletesahi be .. phod diya ek dum :)
ReplyDeleteतेरी हर भूल को सही साबित करने को
ReplyDeleteकोई वजह ढूंढ लिया करते थे..and then
तुझे हर कदम पे इलज़ाम देने को
कुछ न कुछ वजह ढूंढ ली है
i just loved the 'love' hidden in this write....lovely...read it twice...:)
@Geetan
ReplyDeleteProfound and palpable at the same time? That is too good a compliment .. :)
Poetry reflects life :)
@Taps
..if you say so :).. I have rarely been this direct in poetry.
@Manu
now that you say this as well, i think kaafi sahi hai :)
@Saumya
I am glad the love was visible, even in the second half :)
well.. can't disagree, I guess :)
ReplyDeleteDrops of Beauty!!
ReplyDeleteReally very very nice... I too experienced this in my life a short while ago.. But m happy as everything has been solved and is OK now. :)
ReplyDeleteJust wanna thank you for this poem. :)